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मान या अपमान | Man Ya Apman | Motivational Story | Heart Touching Story | दिल को छूने वाली कहानी | प्रेरणादायक कहानी | मोटिवेशनल स्टोरी | RKT News

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आपका मान या अपमान किसी दूसरे शख्स के कहने पर नहीं होता. अगर आप चाहे तो किसी के कहे शब्द ले सकते हैं और न चाहें तो छोड़ दीजिए.


एक समय की बात है गौतम बुद्ध किसी गांव के रास्ते जा रहे थे. उन्हें देखकर गांव के कुछ लोग उनके पास आए और उनकी वेशभूषा देख उनका उपहास और अपमान करने लगे.


उन्होंने ने कहा, “यदि आप लोगों की बात समाप्त हो गई हो तो मैं यहां से जाऊं. मुझे दूसरे स्थान पर भी पहुंचना है”. बुद्ध की बात सुनकर वह ग्रामीण हैरान थे. एक शिष्य को ये देखकर बहुत बुरा लगा, उसने पूछा “आपको इनकी बातों का बुरा नहीं लगा?”


"आपका इतना अपमान किया और आप दुःखी भी नहीं हुए."



तब बुद्ध ने कहा, मुझे अपमान से दुःख नहीं होता और स्वागत से सुख भी नहीं होता है. इसीलिए मैं वहीं करूंगा जो मैंने पिछले गांव में किया था.


एक ग्रामीण ने पूछा, पूज्य आपने पिछले गांव में ऐसा क्या किया था.


बुद्ध बोले, “पिछले गांव में कुछ लोग फल-फूल, मिठाइयां लेकर आए थे. तब मैंने उनसे कहा था कि मेरा पेट भरा हुआ है. मुझे माफ करो. तब मैंने उन्हें वह फल वापिस लौटा दिए थे. इस तरह आपने मुझे अपशब्द भेंट किए तो मैं वापिस इन्हें आपको लौटाता हूं.”


इसलिए ध्यान रखें कोई आपके बारे में कुछ बुरा बोलता है तो ये वो इस बात पर निर्भर करता कि आप चीज़ें किस तरह से लेते हैं.  यदि आप स्वीकार नहीं करते हैं तो वह स्वयं ही उनके पास लौट जाते हैं. आपका मान या अपमान किसी दूसरे शख्स के कहने पर नहीं होता. अगर आप चाहे तो किसी के कहे शब्द ले सकते हैं और न चाहें तो छोड़ दीजिए.


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