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Old parliament : पुरानी संसद का आख़िरी दिन, जानिए किसने और क्या कहा?

Old parliament : पुरानी संसद का आख़िरी दिन, जानिए किसने और क्या कहा?


Old parliament : पुरानी संसद का आख़िरी दिन, जानिए किसने और क्या कहा?


मौजूदा संसद भवन अब पुरानी संसद बन गया है. इस ऐतिहासिक इमारत में सोमवार को शुरू हुआ विशेष सत्र दिन भर चली चर्चा के बाद स्थगित कर दिया गया.


मंगलवार को अब संसद की कार्यवाही नई इमारत में शुरू होगी.


केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया है.


विशेष सत्र के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुराने संसद भवन में अपना आख़िरी भाषण दिया. इस दौरान उन्होंने पूर्व पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक का ज़िक्र किया.


सदन में जाने से पहले पीएम ने मोदी कहा, "संसद का ये सत्र छोटा है लेकिन ये बहुत मूल्यवान है."



पीएम ने बताया भावुक पल

प्रधानमंत्री मोदी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि कल (मंगलवार) गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर हम नई संसद में जाएंगे. ये सत्र छोटा है लेकिन बहुत मूल्यवान है.


पीएम मोदी ने चंद्रयान-3 अभियान की सफलता, भारत की अध्यक्षता में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन और पीएम विश्वकर्मा मिशन की शुरुआत को भी रेखांकित किया.


पुरानी संसद में आख़िरी दिन पर पीएम मोदी ने कहा, "पुराने सदन से विदाई लेना, यह एक बहुत ही भावुक पल है. परिवार भी अगर पुराना घर छोड़कर नए घर जाता है, तो बहुत सारी यादें, कुछ पल के लिए उसको झकझोर देती हैं. हम जब इस सदन को छोड़कर जा रहे हैं तो हमारा मन-मस्तिष्क भी उन यादों से भरा हुआ है."


"खट्टे-मीठे अनुभव भी रहे हैं. नोकझोंक भी रही. कभी संघर्ष का तो कभी इसी सदन में उत्सव और उमंग का माहौल भी रहा है. ये सारी स्मृतियां हमारी साझी हैं. ये साझी विरासत है और इसका गौरव भी हम सबका साझा है."


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसदीय इतिहास में योगदान के लिए जवाहरलाल नेहरू से लेकर डॉ. मनमोहन सिंह तक का ज़िक्र किया.


उन्होंने कहा, "इन 75 सालों में हमारी संसद, जन-भावनाओं की अभिव्यक्ति का भवन भी बनी है. हम देखते हैं कि राजेंद्र बाबू से लेकर डॉक्टर कलाम, रामनाथ कोविंद जी और अभी द्रौपदी मुर्मू जी. इन सबके संबोधन का लाभ हमारे सदनों को मिला है."


"उनका मार्गदर्शन मिला है. आदरणीय अध्यक्ष जी, पंडित नेहरू जी, शास्त्री जी, वहां से लेकर अटल जी, मनमोहन सिंह जी तक, एक बहुत बड़ी श्रंखला, जिसने इस सदन का नेतृत्व किया है और सदन के माध्यम से देश को दिशा दी है. देश को नए रंग रुप में ढालने के लिए परिश्रम किया है. आज उन सबका गौरवगान करने का भी अवसर है."


उन्होंने कहा, "सरदार वल्लभ भाई पटेल, लोहिया जी, चंद्रशेखर जी, आडवाणी जी, न जाने अनगिनत नाम, जिन्होंने हमारे इस सदन को समृद्ध करने में, चर्चाओं को समृद्ध करने में, देश के सामान्य से सामान्य व्यक्ति की आवाज को ताकत देने का काम, इस सदन में किया है."


पीएम मोदी ने कहा, "उमंग, उत्साह के पल के बीच कभी सदन की आंख से आंसू भी बहे. ये सदन दर्द से भर गया, जब देश को तीन प्रधानमंत्रियों को उनको कार्यकाल में ही खोने की नौबत आई, जिसमें नेहरू जी, शास्त्री जी और इंदिरा जी थीं. तब इस सदन ने आंसूभरी आंखों से उन्हें विदाई दी."


लोकसभा अध्यक्ष बोले- ये सदन संवाद का प्रतीक रहा

संसद के विशेष सत्र के पहले दिन लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने सदन को संबोधित करते हुआ कहा कि आज के बाद से संसद की कार्यवाही नए भवन से संचालित होगी.


लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने कहा, “अब तक सदन को 15 प्रधानमंत्रियों का नेतृत्व प्राप्त हुआ. जिन्होंने इस देश की दशा और दिशा तय की है. ये सदन संवाद का प्रतीक रहा है. पिछले 75 सालों में यहां देश हित में सामूहिकता से निर्णय लिए गए.”


“विचार विमर्श की पद्धति से यहां आम जनता को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए कानून बनाए गए. संकट के समय सदन ने एकजुटता से सामना किया. आज इस सदन में कार्यवाही का अंतिम दिन है. आज के बाद सदन की कार्यवाही नए भवन में संचालित होगी."


कांग्रेस चीफ़ खड़गे का तंज़

संसद की पुरानी इमारत में आखिरी कार्यवाही के मौके पर राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मोदी सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि बदलना है तो देश के हालात बदलो, ऐसे नाम बदलने से क्या होता है.


राज्यसभा में भाषण देते हुए खड़गे ने कहा, “इन 75 साल में हमने बहुत कुछ देखा और सीखा. मैंने 52 साल यहां बिताएं हैं. ये भवन आज़ाद भारत के सभी बड़े फैसलों का गवाह है. इस भवन में संविधान सभा 165 दिन बैठी. संविधान बनाया जो 26 जनवरी 1950 में लागू हुआ.”


खड़गे ने कहा, “26 नवंबर को 1949 को संविधान सभा की बहस को सुनने के लिए करीब 53 हज़ार लोग आए थे. संविधान सभा के 11 दौर की बैठकों के व्यवधान रहित संचालन को आदर्श संचालन माना गया था. वो ऐसा एक वक्त था जब सबको लेकर चला जाता था. आप लोगों ने भी उसे आदर्श संचालन माना था, उस समय देश के प्रधानमंत्री नेहरू जी थे.”


“मैं अपनी बात रखने के लिए थोड़े शब्दों में कुछ कहना चाहता हूं- “बदलना है तो अब हालात बदलो, ऐसे नाम बदलने से क्या होता है? देना है तो युवाओं को रोजगार दो, सबको बेरोजगार करके क्या होता है? दिल को थोड़ा बड़ा करके देखो, लोगों को मारने से क्या होता है? कुछ कर नहीं सकते तो कुर्सी छोड़ दो, बात-बात पर डराने से क्या होता है? अपनी हुक्मरानी पर तुम्हें गुरूर है, लोगों को डराने-धमकाने से क्या होता है?”


वहीं, कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि पुरानी इमारत यादों और इतिहास से भरी हुई है.


उन्होंने कहा, "ये एक दुखद पल है. उम्मीद करते हैं कि नई इमारत में बेहतर सुविधाएं, नई तकनीकी और सदस्यों के लिए ज़्यादा सहूलियतें होंगी. अब ये साफ़ हो गया है कि सरकार पुरानी से नई इमारत में जाने के पल को ख़ास बनाना चाहती थी. उन्होंने ये अलग अंदाज़ में करना चाहा. हम यहां उनका मकसद समझ सकते हैं."


पुरानी संसद के सामने असदुद्दीन ओवैसी

उन्होंने कहा कि यह संसद एक इमारत नहीं है, यह देश का दिल है, जो गरीब लोगों की तकलीफ़ को महसूस करती है.


ओवैसी ने कहा, "मैं आपके सामने 15 मिसालें पेश करूंगा, जब संसद ने अपनी नाकामी के सबूत पेश किए. एक जब दिल्ली की सड़कों पर सिखों का कत्ल किया जा रहा था. एक उस वक्त जब 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद की शहादत हुई."


"भागलपुर, जिसमें रेशम के कारोबार को ख़त्म किया गया और मुसलमानों को जहां दफ़ना दिया गया, वहां पर फूल गोभी उगना शुरू हो गई. एक उस वक्त नाकामी साबित हुई, जब मुज़फ़्फ़रनगर और गुजरात में नस्लकशी की गई."


उन्होंने कहा, "हम देखते हैं कि मुंबई की सड़कों पर इंसानियत का नंगा नाच हुआ. एक उस वक्त जब संसद में टाडा, पोटा, जैसा काला कानून बनाया गया. यूएपीए का कानून बनाया गया. अफ़स्पा का कानून बनाया गया, जिसको 1958 में एक साल के लिए बनाया गया था और हम 2023 में आ गए."


ओवैसी ने कहा, "ये भारत का दिल है. आज गरीबों, मजलूमों, मुसलमानों, कश्मीर के लोगों, दलितों और आदिवासियों में इस संसद के लिए मोहब्बत और विश्वास खत्म हो रहा है, कम हो रहा है. इसलिए जनता सड़कों पर आकर विरोध कर रही है. क्योंकि उन्हें लगता है कि यह संसद हमारा दिल नहीं है."


ओवैसी ने कहा, "एक बहुत बड़े शायर ने कहा था, अभी चिराग़े-सरे-रह को कुछ ख़बर ही नहीं, अभी गरानी-ए-शब में कमी नहीं आई, निज़ाते-दीदा-ओ-दिल की घड़ी नहीं आई, चले चलो कि वो मंज़िल अभी नहीं आई."


"पिच बदलने से गेम नहीं बदलता, गेम को बदलना पड़ेगा. आप पिच बदल रहे हैं. वरना आप याद रखिए, जब हम लोकतंत्र के नियमों पर, संविधान पर अटूट अमल नहीं करेंगे, तो कहीं यह नई इमारत भी हिटलर की राइकस्टाग (जर्मन संसद) वाली इमारत न साबित हो जाए."

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