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जज की टिप्पणी,जनता का निर्णय,गोडसे निर्दोष होते | Judge's comment, public verdict, Godse would have been innocent

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जज खोसला ने कहा कि जनता अगर इंसाफ़ करती तो गोडसे बेक़सूर क़रार दिए जाते

जस्टिस खोसला ने अपनी क़िताब में लिखा है कि जब गोडसे ने बोलना बंद किया, तो एक गहरी ख़ामोशी के बीच महिलाएं रो रही थीं, पुरूष खांस रहे थे और अपना रूमाल ढूंढ रहे थे

गोडसे ने कहा था कि गांधी राष्ट्र पिता नहीं, पाकिस्तान के पिता थे क्योंकि उन्होंने भारत के टुकड़े कर पाकिस्तान नामक मुल्क को जन्म दिया

बयान में गोडसे ने बताया- गांधी जी की सांप्रदायिक और भेदभावपूर्ण नीति ने उद्धेलित कर गोली चलाने के लिए प्रेरित किया


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गांधी-हत्या मामले में याचिका पर सुनवाई के बाद गोडसे पर फ़ैसला सुनाते हुए जस्टिस जीडी खोसला ने एक बहुत महत्वपूर्ण टिप्पणी की थी.उस टिप्पणी में उन्होंने कहा था कि अदालत में मौज़ूद दर्शकों को अगर ज्यूरी का दर्ज़ा देकर उनसे फ़ैसला सुनाने को कहा जाए, तो निश्चय ही गोडसे भारी बहुमत से महात्मा गांधी की हत्या के आरोप से ‘निर्दोष’ करार दिया जाएगा.यह वाक़या 17 मई 1949 का है जब गोडसे को फांसी की सज़ा सुनाई गई थी.लेकिन वास्तव में यह बात ऐसी है, जो सोये हुए दिमाग को भी झकझोरकर स्वतंत्र भारत के इतिहास को नए सिरे से रेखांकित करने के लिए प्रेरित करती है.

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गांधी-हत्या केस, गोडसे और जस्टिस खोसला की क़िताब  

दरअसल, जस्टिस जीडी खोसला वो जज थे जिन्होंने बिड़ला हाउस में गांधी जी को तीन गोलियां मारने वाले नाथूराम गोडसे के खिलाफ़ ट्रायल कोर्ट के फ़ैसले को लेकर याचिका पर सुनवाई की थी.उस दौरान उन्होंने, अपने अनुभव, नाथूराम गोडसे के तर्क और संभावनाओं का विश्लेषण करते हुए अपनी क़िताब ‘द मर्डर ऑफ़ द महात्मा‘ में बाक़ायदा इस बात का ज़िक्र किया है कि उस दिन अदालत में बैठी जनता को अगर ज्यूरी बनाकर उसे फ़ैसला देने को कहा जाता, तो यह तय था कि वह गांधी जी की हत्या के केस में नाथूराम विनायक गोडसे को प्रचंड बहुमत से बरी कर देती.

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नाथूराम विनायक गोडसे 

इसे विस्तार से जस्टिस खोसला लिखते हैं –

” जब उसने (गोडसे) बोलना बंद कर दिया, तो दर्शकों/श्रोताओं के बीच एक गहरी ख़ामोशी छा गई.कई महिलाएं आंसू बहा रही थीं, पुरुष खांस रहे थे और अपने रूमाल ढूंढ रहे थे.अचानक से सुनाई देने वाली दबी खांसी की आवाज़ सन्नाटे को चीरती और उसे और भी ज़्यादा गहरा बना देती थी.


ऐसा लग रहा था मानो मैं किसी सनसनीखेज़ नाटक या फ़िर हॉलीवुड की किसी फिल्म के सीन का हिस्सा हूं. ”


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जस्टिस खोसला आगे लिखते हैं –

” मैंने एक या दो बार गोडसे को टोका और कहा कि वह जो कह रहा है, वह इस केस के विषय से अलग है.परंतु मेरे सहकर्मी (साथी जज) उसे सुनना चाहते थे और साथ ही, दर्शकों का भी यही मानना था कि गोडसे का भाषण ही उस  सुनवाई का सबसे ज़रूरी हिस्सा था.


इसी प्रभाव और प्रतिक्रिया के बीच अंतर को देखने के लिए उठी जिज्ञासा ने मुझे लेखक बनाया.


मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर उस दिन न्यायालय में उपस्थित दर्शकों को संगठित कर ज्यूरी बना दिया जाता, इसके साथ ही उन्हें नाथूराम गोडसे पर फ़ैसला सुनाने को कहा जाता, तो भारी बहुमत के आधार पर गोडसे बेक़सूर करार दिया जाता. ”    


इसके साथ ही जस्टिस खोसला ने अपनी क़िताब में कुछ अन्य महत्वपूर्ण बातों का भी ज़िक्र किया है, जो नाथूराम गोडसे के लंबे भाषण रूपी 150 सूत्रीय बयान के मुख्य अंश हैं तथा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.


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गांधी राष्ट्र पिता नहीं पाकिस्तान के पिता थे

गोडसे को अपने किए का कोई पछतावा नहीं था.

गांधी जी को गोली मारने के कृत्य को गोडसे ने हमेशा यही कहा कि वह देश के लिए उठाया गया ज़रूरी क़दम था.यही कारण है कि गोडसे ने अपने 150 सूत्रीय बयान (गांधी-हत्या के कारण) में गांधी-वध को, देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता की रक्षा के निमित्त एक देशभक्त का नैतिक कर्तव्य बताया.

अपने बयानों में गोडसे ने गांधी को राष्ट्रपिता नहीं बल्कि पाकिस्तान का पिता बताया.

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गांधी और भारत-विभाजन 

गोडसे के अनुसार गांधी ने भारत को तोड़ा, उसे कमज़ोर और बर्बाद किया.कोई राष्ट्र-पुरुष ऐसे कार्य नहीं करता.ऐसे में, गांधी जी भारत नामक राष्ट्र के पिता नहीं कहे जा सकते.उन्हें भारत का विभाजक कहा जाना चाहिए.


दूसरी तरफ़, गांधी जी ने पाकिस्तान नामक एक नए मुल्क को जन्म दिया, और चूंकि जन्म देने वाला जनक यानि पिता कहलाता है, इसलिए वास्तव में वे पाकिस्तान के पिता हुए.

  

गोडसे ने आरोप लगाया कि गांधी ने भारत में संपूर्ण रूप से सांप्रदायिक ख़िलाफ़त आंदोलन का समर्थन किया.


वे हज़ारों बंगालियों के क़त्लेआम पर चुप्पी साधे रहे और दंगा करवाने वाले तथा पाकिस्तान-निर्माण की पैरवी करने वाले हुसैन सुहरावर्दी को न सिर्फ़ उन्होंने समर्थन दिया बल्कि अपनी सभाओं में उसे सम्मानित भी किया.

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गांधी, हुसैन सुहरावर्दी और कलकत्ता दंगे के दृश्य 


वे विभाजन के मौक़े पर भी चुप्पी साधे रहे लेकिन विभाजन के बाद, पाकिस्तान को आर्थिक मदद देने की मांग को लेकर उपवास पर बैठ गए.


कई स्थानों पर हिन्दुओं का भीषण नरसंहार हुआ.ज़िन्दा बचे हिन्दू भागकर किसी तरह दिल्ली आए और वीरान पड़ी मस्ज़िदों में शरण ली.उन्हें मदद करने के बजाय गांधी जी ने मस्ज़िदें तत्काल ख़ाली करने को कहा.


हिन्दुओं के साथ गांधीजी के ऐसे भेदभावपूर्ण व्यवहार और उनकी मुस्लिम परस्त विचारधारा ने गोडसे को उद्धेलित कर उनकी हत्या के लिए प्रेरित किया.

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नहीं था कोई पछतावा

गांधी जी की हत्या मामले के मुख्य आरोपी नाथूराम गोडसे ने अपने कृत्य के लिए प्रायश्चित नहीं किया.गोडसे ने अपने अपराधों को माना लेकिन साथ ही यह भी कहा कि यह अपनी मातृभूमि भारत के हित में आवश्यक कार्य था.


दरअसल, 30 जनवरी 1948 की शाम क़रीब सवा पांच बजे दिल्ली के बिड़ला हाउस में प्रार्थना सभा के लिए जाते हुए गांधी जी को नाथूराम गोडसे ने गोली मार दी थी.उसके बाद हिरासत में लेकर पुलिस उसे तुग़लक रोड पुलिस थाने ले आई.वहां पहुंचे पत्रकार ने गोडसे से सवाल किया –


” इस बारे में आप कुछ कहना चाहेंगें … कोई प्रतिक्रिया? ”

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गोडसे ने ज़वाब दिया –

” फ़िलहाल तो मैं सिर्फ़ इतना ही कहना चाहूंगा कि मैंने जो कुछ भी अभी किया है, उस पर मुझे तनिक भी पछतावा नहीं है, शेष बातें मैं न्यायालय में करूंगा. ”


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समाचार पत्रों में इसकी चर्चा थी.

15 नवंबर 1949 को दी गई थी गोडसे को फांसी

दिल्ली के लाल क़िले में चले इस मुक़दमे में जज आत्मचरण की अदालत ने नाथूराम विनायक गोडसे और उनके साथी नारायण आप्टे को फांसी की सज़ा सुनाई.


पांच अन्य आरोपियों को आजीवन कारावास की सज़ा मिली और वीर सावरकर को बरी कर दिया गया.

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गांधी-हत्या केस में आरोपी गोडसे व अन्य 

गोडसे ने अपनी सज़ा को लेकर किसी तरह की राहत या दया-याचना से साफ़ इनकार कर दिया.


लेकिन अन्य आरोपियों (दोषियों) द्वारा दायर अपील पर याचिका की सुनवाई करते हुए पंजाब हाईकोर्ट में जस्टिस जीडी खोसला के नेतृत्व में अदालत ने निचली अदालत के फ़ैसले को बरक़रार रखा.इसके बाद 15 नवंबर 1949 को अंबाला जेल में गोडसे और आप्टे को फांसी दे दी गई.    

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