एक अनमोल सीख | Ek Anmol Seekh
एक बार एक वैज्ञानिक ने एक टिड्डे तो पकड़ा और उसे अपनी आवाज पर छलांग लगाना सिखाया। वैज्ञानिक टिड्डे से कहता कूदो टिड्डा उसके आवाज सुनते ही जोर से छलांग लगा देता। अब वह वैज्ञानिक था तो प्रयोग करना बनता ही था उन्होंने टिड्डे की छलांग पर प्रयोग किया।
वैज्ञानिक ने उसकी एक टांग तोड़ दी और फिर बोला कूदो अब टिड्डे की छलांग की दुरी कम हो गयी। वैज्ञानिक ने उसकी दूसरी टांग तोड़ दी और फिर बोला कूदो टिड्डे की छलांग और कम हो गयी। अब तोड़ी गयी उसकी तीसरी टांग फिर छलांग की दुरी और कम हो गयी।
एक-एक करके बेचारे टिड्डे की सारी टांगे तोड़ दी गयी। अब आखरी टांग टूटने पर जब उससे कहा गया कूदो तो वह हिल भी नहीं पाया। अब वैज्ञानिक ने अपना निष्कर्ष अपनी डायरी में लिखा, जानते हो उसने क्या लिखा।
जब टिड्डे की एक टांग तोड़ी गयी तो वह थोड़ा बहरा हो गया। जब उसकी दूसरी टांग तोड़ी गयी तो वो और बहरा हो गया। हर टांग टूटने के साथ वो और बहरा और बहरा होता गया। और सारी टांग टूटने के बाद वह बिलकुल बहरा हो गया अब जोर-जोर से चिल्लाने का भी उसपर कोई असर नहीं हुआ। वो तो अपनी जगह से हिला तक नहीं छलांग लगाना तो दूर की बात थी।
इस कहानी को सुनकर सभी को ऐसा ही लग रहा है ना की क्या मुर्ख वैज्ञानिक था इतनी सीधी सी बात उसे समझ में नहीं आयी। या कुछ लोग ये भी सोच रहे होंगे की ये तो किसी बच्चे को भी पता है की टिड्डे की छलांग उसके टांग टूटने की वजह से कम होती जा रही थी ना की वह बहरा हो गया था।
दोस्तों हम सभी जीवन में कई बार ऐसे ही मुर्ख बन जाते है कई बार जीवन में दो घटनाये एक साथ ऐसे घटती है की उनका एक दूसरे से कोई सम्बन्ध होता ही नहीं फिर भी ऐसा लगता है की गहरा सम्बन्ध है। कभी कभी दीखता कुछ और है लेकिन समझ कुछ और आता है और वास्तव में होता कुछ और है।
इसीलिए अगर पछताना नहीं है तो जीवन में जल्दवाजी में कोई निर्णय ना ले हमेशा समझबुझ का इस्तेमाल करे, सावधानी बरते नतीजे सोच विचार कर ही निकाले।
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