भानगढ़ किले का रहस्य: भारत की सबसे भूतिया जगह, राजकुमारी रत्नावती और तांत्रिक का अभिशाप
Mystery of Bhangarh Fort: most haunted place, Rajkumari Ratnavati and Curse of Tantrik
भानगढ़ का किला: भारत का सबसे भूतिया जगह, सूरज ढलते ही दिखाई देता है खौफनाक मंजर
भानगढ़ को दुनिया के सबसे डरावनी जगहों में से एक माना जाता है। इस किले में आज तक जो भी गया है सब ने यहां की नेगेटिव ऊर्जा को महसूस किया है। लोगों की माने तो यहाँ से रात में किसी के रोने और चिल्लाने की आवाजें आते है यहां पर मारे गए लोगों की आत्माएं आज भी रात को भटकती हैं
भूत - प्रेत इस दुनिया में होते हैं या नहीं इस बात की पुष्टि करना तो बहुत मुश्किल है, लेकिन 'भूत' का नाम सुनते ही अच्छे से अच्छे लोगों के मन में डर की लहर जरूर दौड़ जाती है। वैसे तो हमारे देश में बहुत से हॉन्टेड प्लेस है लेकिन इस लिस्ट में जिसका नाम सबसे ऊपर आता है वो है भानगढ़ का किला। जो कि बोलचाल में "भूतो का भानगढ़" के नाम से भी ज्यादा जाना जाता है।
भानगढ़: एशिया की सबसे भूतिया जगह (Bhangarh: Asia's most haunted place)
भानगढ़ को दुनिया के सबसे डरावनी जगहों में से एक माना जाता है यह किला न सिर्फ भारत बल्कि इसकी गिनती विश्व के चुनिंदा सबसे डरावनी जगहों में होती है।
इस किले में आज तक जो भी गया है सब ने यहां की नेगेटिव ऊर्जा को महसूस किया है। लोगों की माने तो यहाँ से रात में किसी के रोने और चिल्लाने की तेज आवाजें आते है यहां पर आज भी भूत रहते हैं आज भी यहां सूर्य उदय होने से पहले और सूर्य अस्त होने के बाद किसी को रुकने की इजाजत नहीं है
क्या भानगढ़ श्रापित है, क्या है भानगढ़ किले का रहस्य
राजस्थान के अलवर जिले में स्तिथ भानगढ़ के किले की कहानी बड़ी ही रोचक है। भानगढ़ किले का निर्माण सन् 1573 में हुआ। निर्माण के लगभग 300 वर्षों तक यह किला आबाद रहा फिर एक श्राप के कारण बर्बाद हो गया। कहा जाता है कि एक ही रात में पूरा भानगढ़़ उजड़ गया था।
सरिस्का के जंगलों से घिरा हुआ भानगढ़ आज भी खुद में कई रहस्य समेटे खड़ा है। इसके बनने और खंडहर होने के कई किस्से इतिहास की किताबों में दफन है।
ऐसे ही एक किस्से के अनुसार यहां की एक राजकुमारी पर एक तांत्रिक का दिल आ जाता है वो राजकुमारी को वश में करने लिए काला जादू करता है पर खुद ही उसी जादू का शिकार हो कर मारा जाता है। मरने से पहले तांत्रिक भानगढ़ को बर्बादी का श्राप दे जाता है और संयोग से उसके एक महीने बाद ही पड़ौसी राज्य से लड़ाई में राजकुमारी सहित सारे भानगढ़ वासी मारे जाते है।
भानगढ़ का किला - राजकुमारी रत्नावती और तांत्रिक का श्राप
भानगढ़ किला जो दिखने में जितना शानदार है उसका अतीत उतना ही भयानक है आपको बता दें की भानगढ़ किले के बारे में प्रसिद्ध एक कहानी के अनुसार रानी रत्नावती (Rani Ratnavati) भानगढ़ की राजकुमारी थी।
राजकुमारी रत्नावती बहुत खुबसुरत थी, वह इतनी सुंदर थी कि उसकी सुन्दरता की चर्चा पुरे राज्य में हुआ करती थी। देश विदेश के राजकुमारो से लेकर राजा महाराजा तक रत्नावती से विवाह की इच्छा रखते थे। कई राज्यो से उनके लिए विवाह के प्रस्ताव आ रहे थे।
कहा ये भी जाता है की राजकुमारी रत्नावती भानगढ़ की रानी थी और भानगढ़ के राजा छत्रसिंह की पत्नी थी। वह राजा तीतरवाड़ा की पुत्री थी। रानी रत्नावती रूपवती होने के साथ-साथ तंत्र विद्या में भी पारंगत थी।
कहानी के अनुसार काले जादू का महारथी सिंधु सेवड़ा नाम के एक तांत्रिक ने भानगढ़ के बारे में जब यह सुना कि यहां तांत्रिकों का सम्मान किया जाता है तो वह यहां पहुंच गया और महल के सामने स्थित एक पहाड़ी पर अपना स्थान बनाकर साधना करने लगा।
वहीँ से एक दिन उसकी दृष्टि राजकुमारी रत्नावती पर पड़ी और वह उसके सौंन्दर्य पर मोहित हो गया। तब से वह राजकुमारी रत्नावती के रूप का दिवाना हो गया था। वह रत्नावती को पाना चाहता था किंतु, ये आसान न था, वह कोई साधारण स्त्री नहीं, बल्कि उसी राज्य की राजकुमारी थी और यहां के राजा को यदि उसके प्रयासों की भनक भी मिल गई तो उसके प्राण बचाने वाला कोई नहीं होगा। इस सबके बाद भी वह राजकुमारी को मन से नहीं निकाल पा रहा था।
उसने कई बार छोटे-मोटे प्रयास किए, लेकिन वह सफल न हो सका। अपनी लगातार असफलताओं के कारण राजकुमारी को पा लेने की इच्छा उसके मन में बदला लेने की हद तक बढ़ती जा रही थी।
वह अच्छी तरह जान गया था कि बिना तांत्रिक शक्तियों का प्रयोग किए रत्नावती तक पहुंच पाना भी असंभव है इसलिए सेवड़ा तांत्रिक ने अपनी काली तांत्रिक शक्तियों के द्वारा राजकुमारी रत्नावती को अपने वश में करने की योजना बनाने लगा। इस कार्य के लिए उसने राजकुमारी रत्नावती की दासी को अपने साथ मिला लिया।
एक दिन जब वह दासी बाज़ार में राजकुमारी रत्नावती के लिए इत्र लेने गई। तब तांत्रिक सिंधु सेवड़ा ने तांत्रिक शक्तियों से उस इत्र पर वशीकरण मंत्र प्रयोग कर उस इत्र के बोतल को राजकुमारी रत्नावती के पास भिजवा दिया। उस तांत्रिक का यह जादू था की जो भी उस इत्र को अपने ऊपर छिड़केगा वह उस तांत्रिक के वश में हो जायेगा और उसकी ओर खिंचा चला आयेंगा। उसकी योजना थी कि वशीकरण के प्रभाव से राजकुमारी रत्नावती उसकी ओर खिंची चली आयेंगी।
किंतु एक विश्वशनीय व्यक्ति ने राजकुमारी रत्नावती को इस छल के बारे में बता दिया। जब रत्नावती ने जोर देकर दासी से पुछा तो दासी ने सारी सच्चाई बता दिया।
राजकुमारी रत्नावती को तांत्रिक पर बहुत घस्सा आया और उसने उस इत्र के बोतल को उठाया और उसे खिड़की से बाहर फेंक दिया। बोतल एक चट्टान पर गिरा और सारा इत्र उस चट्टान पर बिखर गया और उस तांत्रिक का वशीकरण मंत्र उस चट्टान पर चल गया।
तंत्र विद्या के प्रभाव में वह चट्टान तीव्र गति से लुड़कते हुए तांत्रिक सिंधु सेवड़ा की ओर जाने लगा।
जब तांत्रिक ने चट्टान से अपनी मौत निश्चित देखी तो मरने से पहले श्राप दे दिया कि इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्दी ही मर जायेंगे उनकी आत्माएं सदा किले में भटकती रहेंगी और भानगढ़ बर्बाद हो जायेगा। तांत्रिक चट्टान के नीचे कुचला गया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी।
उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों के बाद ही भानगढ़ पर पड़ोसी राज्य ने हमला कर दिया जिसमें भारी नरसंहार हुआ किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये साथ ही रत्नावती भी मारी गई और भानगढ़ वीरान हो गया। तब से वीरान हुआ भानगढ आज तक वीरान है।
कहा जाता है कि किले में एक साथ इतने बड़े कत्लेआम के बाद वहां मौत की चींखें गूंज गयी थी आज भी यहाँ से रात में किसी के रोने, चीखने और चिल्लाने की तेज आवाजें आती है।
तांत्रिक के श्राप के कारण मारे गए उन लोगों की आत्माएं आज भी रात को भानगढ़ के किले में भटकती हैं और सूर्यास्त के बाद इस इलाके में किसी भी व्यक्ति के रूकने के लिए मनाही है।
कहा जाता है एक नहीं बल्कि दो दो श्राप ने उजाड़ दी भानगढ़ की खुशियां। भानगढ़ के बर्बाद होने के संबंध में दो कहानियाँ प्रचलित है।
भानगढ़ का किला - योगी बालूनाथ का श्राप
कहानी के अनुसार जहाँ भानगढ़ किले का निर्माण करवाया गया, वह स्थान योगी बालूनाथ का तपस्थल था। उसने इस वचन के साथ महाराजा भगवंतदास को भानगढ़ किले के निर्माण की अनुमति दी थी कि किले की परछाई किसी भी कीमत पर उसके तपस्थल पर नहीं पड़नी चाहिए।
महाराजा भगवंतदास ने तो अपने वचन का मान रखा, किंतु उसके वंशज माधोसिंह इस वचन की अवहेलना करते हुए किले की ऊपरी मंज़िलों का निर्माण करवाने लगे। ऊपरी मंज़िलों के निर्माण के कारण योगी बालूनाथ के तपस्थल पर भानगढ़ किले की परछाई पड़ गई।
ऐसा होने पर योगी बालूनाथ ने क्रोधित होकर श्राप दे दिया कि यह किला आबाद नहीं रहेगा। उनके श्राप के प्रभाव में किला ध्वस्त हो गया।
क्या भानगढ़ के किले में रहते हैं भूत - प्रेत ?
वर्तमान में भानगढ़ का किला जीर्ण-शीर्ण स्थिति में उजाड़ पड़ा हुआ है। लोगों का मानना है कि भानगढ़ किले में उन लोगों की आत्मायें बसती हैं, जिनका कत्लेआम किया गया। सूर्यास्त के बाद जो यहाँ गया, उसे कई दिल दहला देने वाली घटनाओं का सामना करना पड़ा। किले से महिलाओं की चूड़ियों की खनक और उनके रोने की आवाजें अक्सर सुनी जाती है। किले के पिछले दरवाज़े में मौजूद छोटे अंधेरे दरवाज़े से एक अजीब सी गंध आने और किसी के बात करने की आवाजें सुनाई देने की भी बात कहीं जाती है। तलवारों की टंकार और लोगों की चीखें भी सुनने की बात सामने आई है।
भानगढ़ का किला (Bhangarh Fort)
भानगढ़ का किला, राजस्थान के अलवर जिले में स्तिथ है। इस किले से कुछ किलोमीटर कि दुरी पर विशव प्रसिद्ध सरिस्का राष्ट्रीय उधान (Sariska National Park) है। भानगढ़ तीन तरफ़ पहाड़ियों से सुरक्षित है। सामरिक दृष्टि से किसी भी राज्य के संचालन के यह उपयुक्त स्थान है।
सुरक्षा की दृष्टि से इसे भागों में बांटा गया है। सबसे पहले एक बड़ी प्राचीर है जिससे दोनो तरफ़ की पहाड़ियों को जोड़ा गया है। इस प्राचीर के मुख्य द्वार पर हनुमान जी विराजमान हैं। इसके पश्चात बाजार प्रारंभ होता है, बाजार की समाप्ति के बाद राजमहल के परिसर के विभाजन के लिए त्रिपोलिया द्वार बना हुआ है। इसके पश्चात राज महल स्थित है।
इस किले में कई मंदिर भी है जिसमे भगवान सोमेश्वर, गोपीनाथ, मंगला देवी और केशव राय के मंदिर प्रमुख मंदिर हैं। इन मंदिरों की दीवारों और खम्भों पर की गई नक़्क़ाशी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह समूचा क़िला कितना ख़ूबसूरत और भव्य रहा होगा। सोमेश्वर मंदिर के बगल में एक बाबड़ी है जिसमें अब भी आसपास के गांवों के लोग नहाया करते हैं।
भानगढ़ किले का इतिहास (History Of Bhangarh)
भानगढ़ किले का निर्माण सन् 1573 में आमेर के महाराजा भगवंतदास ने करवाया था। निर्माण के लगभग 300 वर्षों तक यह किला आबाद रहा। सन् 1613 में भगवंतदास के कनिष्ठ पुत्र मानसिंह जो मुग़ल बादशाह अकबर के नवरत्नों में सम्मिलित्त थे, उनके छोटे भाई भाई माधो सिंह ने इस किले को अपनी रिहाईश बना लिया।
माधो सिंह तीन पुत्र थे – छत्र सिंह, सुजान सिंह, और तेज सिंह। माधोसिंह की मृत्यु के उपरांत भानगढ़ किले का अधिकार छत्र सिंह को मिला। छत्रसिंह का पुत्र अजबसिंह था।
अजबसिंह ने भानगढ़ के निकट ही अजबगढ़ बसाया और वहीं रहने लगा। उसके दो पुत्र काबिल सिंह और जसवंत सिंह भी अजबगढ़ में ही रहे, जबकि तीसरा पुत्र हरिसिंह सन् 1722 में भानगढ़ का शासक बना। इसके साथ ही भानगढ की चमक कम होने लगी।
हरिसिंह के दो पुत्र मुग़ल बादशाह औरंगजेब के समकालीन थे। औरंगजेब कट्टर पंथी मुसलमान था उसके प्रभाव में आकर उन दोनों ने मुसलमान धर्म अपना लिया था। धर्म परिवर्तन उपरांत उनका नाम मोहम्मद कुलीज़ और मोहम्मद दहलीज़ पड़ा। औरंगजेब ने इन दोनों को भानगढ़ की ज़िम्मेदारी सौंपी थी।
औरंगजेब के शासन के उपरांत मुग़ल कमज़ोर पड़ने लगे, तब जयपुर के राजा सवाई जयसिंह ने इन्हे मारकर भानगढ़ पर कब्जा कर लिया और माधो सिंह के वंशजों को गद्दी दे दी।
कहा जाता है श्राप के कारण भानगढ़ और अजबगढ़ बीच युद्ध में राजकुमारी रत्नावती समेत भानगढ में रहने वाले सभी लोग मारे गये और भानगढ़ तबाह हो गया। उसके बाद भानगढ़ कभी न बस सका।
पहाड़ियों से घिरा और मीलों तक उजड़ा यह पुरातन शहर भले ही कहने को शापग्रस्त और भुतहा मान लिया गया हो, लेकिन इसके खंडहरों की वीरानी में भी सम्मोहित करने वाला सौन्दर्य बसता है। इस सम्मोहन का कारण शायद इस ध्वस्त इमारतों के बीच हजारों की संख्या में उगे केवड़े के पेड़ों का हरापन और उनसे निकलने वाली गंध भी हो सकती है। क्योंकि जब तेज हवा चलती है तो पूरे वातावरण में केवड़े की खूशबू वातावरण को और रहस्यमय बना देती है।
किलें में सूर्यास्त के बाद प्रवेश निषेध
फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (Archaeological survey of india: ASI) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने सख्तक हिदायत दे रखी है कि सूर्यास्त के बाद इस इलाके में किसी भी व्यतक्ति के रूकने के लिए मनाही है। भारतीय पुरातत्व के द्वारा इस खंडहर को संरक्षित कर दिया गया है।
भानगढ़ किले के मंदिर (Temple of Bhangarh)
इस किले में कई मंदिर भी है जिसमे भगवान सोमेश्वर, गोपीनाथ, मंगला देवी और केशव राय के मंदिर प्रमुख हैं।
इन मंदिरो कि एक यह विशेषता है कि जहाँ किले सहित पूरा भानगढ़ खंडहर में तब्दील हो चूका है वही भानगढ़ के सारे के सारे मंदिर सही है परन्तु अधिकतर मंदिरो से मुर्तिया गायब है। सोमेश्वर महादेव मंदिर के अनुसार भानगढ़ के इस सोमेशवर महादेव मंदिर में सिंधु सेवड़ा तांत्रिक के वंशज ही पूजा पाठ कर रहे है।
मंदिर के पुजारी के अनुसार यहाँ भूत है यह बात सही है पर वो भूत किले के अंदर केवल खंडहर हो चुके महल में ही रहते है महल से निचे नहीं आते है क्योकि महल की सीढ़ियों के बिलकुल पास भोमिया जी का स्थान है जो उन्हें महल से बाहर नहीं आने देते है। यहां घुमने आने वाले लोग रात के समय किला परिसर में रह सकते है कोई दिक्कत नहीं है पर महल के अंदर नहीं जाना चाहिए।
भानगढ़ में भूत है कि नहीं यह एक विवाद का विषय हो सकता है पर यह जरूर है कि भानगढ़ एक बार घूमने लायक जगह है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी इन्टरनेट पर उपलब्ध जानकारी के आधार पर दी गई है। RKT NEWS इसके सच या झूठ होने का दावा नहीं करता है।)
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