Jammu and Kashmir: जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की समयसीमा बताएगा केंद्र सरकार, सुप्रीम कोर्ट में होगा फैसला
केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में आज जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की समयसीमा बता सकती है. अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से पूर्ण राज्य का दर्जा वापस ले लिया था. इस वजह से बीते चार साल से जम्मू-कश्मीर एक केंद्रशासित प्रदेश बनकर रह गया है. अनुच्छेद 370 हटाए जाने को लेकर इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई हो रही है. इसी क्रम में आज यानी गुरुवार को केंद्र अपना जबाव दाखिल करा सकता है.
संविधान पीठ कर रही है सुनवाई
इस संबंध में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक पीठ के समक्ष एक बयान देंगे, जो वर्तमान में अनुच्छेद 370 को रद्द करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. जिसके तहत जम्मू और कश्मीर को विशेष संवैधानिक दर्जा प्राप्त था. मंगलवार को, मेहता ने शीर्ष अदालत से कहा था कि वह गुरुवार को एक "सकारात्मक बयान" देंगे, जब उन्हें सरकार से निर्देश लेने और राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए एक समय सीमा के साथ लौटने के लिए कहा गया था.
लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना रहेगा
उन्होंने अदालत से कहा था कि मैंने निर्देश ले लिया है. निर्देश यह है कि केंद्र शासित प्रदेश (जम्मू-कश्मीर) एक स्थायी विशेषता नहीं है. मैं परसों एक सकारात्मक बयान दूंगा. लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना रहेगा. CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है.
मंगलवार को अपनी आखिरी सुनवाई में, सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र बहाल करने की आवश्यकता पर जोर दिया था. कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराए जाने को लेकर केंद्र की तैयारियों के बारे में भी पूछा था.
पीठ ने पूछे कई कड़े सवाल
सुनवाई के दौरान पीठ ने तुषार मेहता से कहा था कि क्या आप एक राज्य को केंद्रशासित प्रदेश में बदल सकते हैं? और क्या एक केंद्रशासित प्रदेश को एक राज्य से अलग किया जा सकता है. इसके अलावा, चुनाव कब हो सकते हैं? ये खत्म होना चाहिए. कोर्ट ने पूछा कि हमें बताएं कि आप जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र कब तक बहाल करेंगे. और इसके लिए आपको कितना समय लगेगा. हम इसे रिकॉर्ड में रखना चाहते हैं.
CJI ने नेशनल सिक्यूरिटी से जुड़ी चिंताओं को स्वीकार करते हुए, जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की बहाली पर भी जोर दिया. जिसे 2018 से सीधे केंद्र सरकार द्वारा प्रशासित किया गया है. बता दें कि अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल उन वरिष्ठ वकीलों में से हैं जो केंद्र के फैसले का बचाव कर रहे हैं जबकि वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हो रहे हैं.
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