अहंकार का उपहार | Ahankar Ka Uphar | Motivational Story | Heart Touching Story | दिल को छूने वाली कहानी | प्रेरणादायक कहानी | मोटिवेशनल स्टोरी | RKT News
महात्मा बुद्ध के पास सेठ रतनचंद दर्शन को आए तो साथ में ढेरों साम्रगी उपहारस्वरूप लाए। वहाँ उपस्थित जन-समूह एक बार तो वाह-वाह कर उठा। सेठ रतनचंद का सिर तो गर्व से तना जा रहा था। बुद्ध के साथ वार्तालाप प्रारंभ हुआ तो सेठ ने बताया कि इस नगर के अधिसंख्य चिकित्सालयों, विद्यालयों और अनाथालयों का निर्माण मैंने ही कराया है। आप जिस सिंहासन पर बैठे हैं वह भी मैंने ही भेंट किया है, आदि-आदि। कई दान सेठजी ने गिनवा दिए। सेठ जी ने जब जाने की आज्ञा चाही तो बुद्ध बोले - "जो कुछ साथ लाए थे, सब यहाँ छोड़कर जाओ।"
सेठ जी चकित होकर बोले - 'प्रभु, मैंने तो सब कुछ आपके समक्ष अर्पित कर दिया है।'
बुद्ध बोले - "नहीं, तुम जिस अंहकार के साथ आए थे उसी के साथ वापस जा रहे हो। यह सांसारिक वस्तुएँ मेरे किसी काम की नहीं। अपना अहम यहाँ त्याग कर जाओ, वही मेरे लिए बड़ा उपहार होगा।"
महात्मा बुद्ध का यह कथन सुनकर सेठ जी उनके चरणों में नतमस्तक हो गए। भीतर समाया हुआ सारा अहंकार अश्रु बनकर बुद्ध के चरणों को धो रहा था।
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