Poisonous Pools in Ocean: समुद्र में मिला जहरीला तालाब, डुबकी मारते ही इंसान की हो जाती है मौत
Poisonous Pools Under The Ocean: दुनियाभर के समुद्र रहस्यों से भरे पड़े हैं। वैज्ञानिक आए दिन समुद्र में ऐसी चीजों की खोज करते हैं जिनके बारे में जानकर लोग हैरान हो जाते हैं। अब वैज्ञानिकों ने लाल सागर में एक विशालकाय तालाब की खोज की है जो जानलेवा है। इस तालाब में तैरने वाले की मौत हो जाती है या वह बेहोश हो जाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ मियामी की टीम ने इस पूल की खोज की है।
इस टीम के सदस्य प्रोफेसर सैम पुरकिस ने इस तालाब के रहस्यों के बारे में बताया है। उनका कहना है कि तालाब में ऑक्सीजन नहीं है और खारापन घातक स्तर तक मौजूद है। इसकी वजह से तालाब के अंदर जाने वाले जीव की तुरंत मौत हो जाती है या बेहोश हो जाता है। यह खतरनाक तालाब समुद्र की गहराई में मौजूद है और यह समुद्री जीवों के लिए मौत की जाल की तरह है।
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस तालाब में जानवरों की त्वचा लंबे समय तक पहले जैसी ही रहती है। खोज करने वाले वैज्ञानिकों को एक केकड़ा मिला था जिसकी मौत आठ साल पहले हो गई थी। लेकिन उसकी तव्चा पहले ही की तरह थी। इस तालाब में ऑक्सीजन की कमी और घातक स्तर का खारापन ही नहीं है, बल्कि इसमें हाइड्रोजन सल्फाइड की तरह कई जहरीले केमिकल्स भी हैं। इसकी वजह से जानवरों की मौत होती है।
सैम पुरकिस ने लाइव साइंस से बात की की है और इस खोज के बारे में बताया है। उन्होंने कहा कि हमारे ग्रह पर सबसे पहले महासागरों का निर्माण कैसे हुआ इस खोज से पता लगाने में मदद मिल सकती है। उनका कहना है कि चरम परिस्थितियों में जो जीव रहते हैं उनकी खोज से धरती पर जीवन की सीमाओं को जानने में मदद मिल सकती है।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा हमारे सौर मंडल और उसके बाहर कहीं जीवन की खोज करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। जीवन की सीमाओं को जब तक समझा नहीं जा सकता है तब तक यह नहीं पता लगाया जा सकता है कि दूसरे ग्रह पर कोई प्राणी जिंदा रह सकता है या नहीं।
ब्राइन पूल आमतौर पर समुद्र तल पर मिलते हैं जहां जीवन नहीं होता है। लेकिन इन तालाबों में सूक्ष्मजीव रहते हैं। ब्राइन पूल का इस्तेमाल कुछ जीव जीवन के लिए करते हैं। उदाहरण के तौर पर मसल्स (Mussels) तालाब में मिलते हैं जो मीथेन का इस्तेमाल करते हैं और इसको कार्बन शुगर में बदल देते हैं। 1770 मीटर की गहराई में यह समुद्र मिला है जिसकी खोज के लिए वैज्ञानिकों की टीम ने रिमोट अंडरवाटर व्हीकल का इस्तेमाल किया है।
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